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आज के समाज में
पाषाण हृदय कह रहे हैं प्रेम का प्रमाण दो चीरते हैं संवेदनाओं को कहते भावनाओं को मान दो पाषाण ..... ये क्या हो रहा है आज के समाज में घूमते हैवान हैं यहाँ इंशा-पोशाक में माँगते हैं मुझसे तुम घृणा को अपना प्यार दो पाषाण ..... कहते-फिरते हैं कामनाओं से परे हैं हम सत्य तो ये है सात्विकता से भटके हैं हम चाह नहीं कोई, कहके छलते हैं फिर आज को पाषाण ....... इक द्रौपदी की लाज उड़ी, द्वापर के इक राज में कितनी ही अबला लुटी हैं, कलयुगी इस जाल में बोलते दुष्कर्म न हो तो कुकर्म को अब थाम लो पाषाण ...... द्वापर और कलयुग को हमारा मिथ्या दोष है रोको कामना को ये तो कामना का दोष है खुद बन रहे दुःशासन कहते शासन में कुछ रोक हो पाषाण ..... स्वरचित- डॉ. कीर्ति पाण्डेय
Nice
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteSpiritual path (pathless path भी कहा जाता है), का एक description जैसा है।
ReplyDeleteअगर अनुभव है, तो "जय हो"🙏
प्यास प्यास कहने से नही बुझेगी प्यास।
ReplyDeleteअपने कर्म में, अपने ईश में रख अखंड आस।।
#सशक्त
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्ति
ReplyDeleteजय श्री राम ।।
Fabulous
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