अतृप्त अभिलाषाएं





डॉ. कीर्ति पाण्डेय


सबने सब करके देख लिया 
फिर भी मानव अतृप्त रहा 
कोई भक्त बना राधा-कृष्ण का 
कोई प्रेम वासना में लिप्त रहा।
सबने ......

सबमें बात सिर्फ एक निकली सत्य 
परिभाषित किये सबने ही तथ्य 
जीने आया था जीवन को 
जीने की कला ही भूल गया।
सबमें ....

कोई मालिक बन मद में रहा 
कोई सेवक बन वेदना सहा 
अनुचर की न वेदना घटी 
न स्वामी कष्ट को मिटा लिया 
सबने ....

धन वैभव अति मिल गया जिसे 
सुख की निद्रा को तरस गया 
जो दीन-हीन अति दुखिया था 
चंद रुपयों के खातिर ही जिया 
सबने ........



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